गणेश चतुर्थी व्रत भगवान गणेश को समर्पित है। इस दिन गणेश जी की विशेष पूजा की
जाती है। पंचांग के अनुसार हर महीने दो चतुर्थी आती हैं। एक शुक्ल पक्ष में और एक
कृष्ण पक्ष में। हर महीने पड़ने वाली कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहा जाता
है, जबकि शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी कहा जाता है।
संकष्टी चतुर्थी व्रत की महिमा
नारद पुराण के अनुसार संकष्टी चतुर्थी के दिन व्रती को पूरे दिन का उपवास रखना
चाहिए। शाम के समय संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत कथा को सुननी चाहिए। संकष्टी
चतुर्थी के दिन घर में पूजा करने से नकारात्मक प्रभाव दूर होते हैं । इतना ही नहीं
संकष्टी चतुर्थी का पूजा से घर में शांति बनी रहती है। घर की सारी परेशानियां दूर होती
हैं। गणेश जी भक्तों की हर मनोकामना पूर्ण करते हैं। इस दिन चंद्रमा को देखना भी शुभ
माना जाता है। सूर्योदय से शुरू होने वाला संकष्टी व्रत चंद्र दर्शन के बाद ही समाप्त होता
है, साल भर में 12-3 संकष्टी व्रत रखे जाते हैं। हर संकष्टी व्रत की एक अलग कहानी
होती है।
कहा जाता है कि संकष्टी चतुर्थी का व्रत नियमानुसार ही संपन्न करना चाहिए, तभी
इसका पूरा लाभ मिलता है। इसके अलावा गणपति बप्पा की पूजा करने से यश, धन,
वैभव और अच्छे स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है।
सुरुआत तिथि | शुक्ल चतुर्थी |
उत्सव विधि | व्रत, पूजा, व्रत कथा, भजन-कीर्तन, गणेश मंदिर में पूजा
|
संकष्टी चतुर्थी पूजा विधि
गणेश संकष्टी चतुर्थी के दिन प्रात: काल स्नान आदि करके व्रत लें।
स्नान के बाद गणेश जी की पूज आराधना करें, गणेश जी के मन्त्र का उच्चारण करें।
पूजा की तैयारी करें और गणेश जी को उनकी पसंदीदा चीजें जैसे मोदक, लड्डू और
दूर्वा घास चढ़ाएं।
गणेश मंत्रों का जाप करें और श्री गणेश चालीसा का पाठ करें और आरती करें।
शाम को चंद्रोदय के बाद पूजा की जाती है, अगर बादल के चलते चन्द्रमा नहीं दिखाई
देता है तो, पंचांग के हिसाब से चंद्रोदय के समय में पूजा कर लें।
शाम के पूजा के लिए गणेश जी की मूर्ति के बाजू में दुर्गा जी की भी फोटो या मूर्ति
रखें, इस दिन दुर्गा जी की पूजा बहुत जरुरी मानी जाती है।
मूर्ति/फोटो पर धुप, दीप, अगरबत्ती लगाएँ, फुल से सजाएँ एवं प्रसाद में केला,
नारियल रखें।
गणेश जी के प्रिय मोदक बनाकर रखें, इस दिन तिल या गुड़ के मोदक बनाये जाते है।
गणेश जी के मन्त्र का जाप करते हुए कुछ मिनट का ध्यान करें, कथा सुने, आरती
करें, प्रार्थना करें।
इसके बाद चन्द्रमा की पूजा करें, उन्हें जल अर्पण कर फुल, चन्दन, चावल चढ़ाएं।
पूजा समाप्ति के बाद प्रसाद सबको वितरित किया जाता है।
गरीबों को दान भी किया जाता है।